Code : BD 2
Author : Atal Kavi Mahant Balak Das
ISBN : 9789386953421
Language : Hindi / Rajasthan
Page : 250
Book Size : A5
Cover Page : Color
Inside Page : B/W
Price : 200/- INR
Author : Atal Kavi Mahant Balak Das
ISBN : 9789386953421
Language : Hindi / Rajasthan
Page : 250
Book Size : A5
Cover Page : Color
Inside Page : B/W
Price : 200/- INR
Description
अनुक्रमणिका
क्र. सं. भजन पेज संख्या
गणपति वंदना
1 मनाऊं सुण्ड सुण्डाला ने 23
2 साधु भाई इण विध गणपत ध्याया 24
गुरू महिमा
3 आओ जी गुरुदेव संगत 25
4 मारी अरजी सुणी ने वेगा आओ 26
5 शबद हरदे लागाजी 27
6 सतगुरु जग से न्यारा 28
7 गुरांसा सतसंग रा फल पाया 29
8 काया रा भेद बतावे 30
9 मारे हिरदे गुरां जी रो डेरो 31
10 गुरु सोहं शब्द ओलखाया 32
11 सतगुरु आया पावणा 33
12 मन समझ्या री वातां 34
13 चदर मारी रंग दिनी 35
14 गुरु गुण गावणा 36
15 संता जोई सोई सतगुरु ध्यावे 37
16 भाई लगन लगी है 38
17 गुरां रे परताप 39
वंदना
18 राम रटे सुख जाणुं 40
19 सेवा मारी मानी लो सदगुरु स्वामी 41
20 मन मेरा नहीं गम का खजाना 42
21 भव बन्धन काट दिज्यो 43
22 जाग मारी नागणी आसन छोड़ो, 44
23 जब से मैं आया 45
24 अकेला छोड़ दिना 46
25 बनाया तत्व का पिंजरा 47
26 बालाजी ने ध्यावे 48
27 भाव भक्ति ले आयो 49
28 गुरुबिन कोन मिटावे अंधियारा 50
29 मारा सतगुरु दीन दयाला 51
30 गुरु देव दया करो दाता 52
31 नागण मारी जागजा 53
32 हिरदा में नहीं ज्ञान 54
33 माने लागो घणो उमावो 55
34 साधु भाई मैं तो भगति के संग 56
35 पार मेरा गांव है 57
36 गुरुजी के गाँव में 58
37 गम की दुनियां में अकेला 59
38 सुनाने लगा, मैं बताने लगा 60
39 जागो सूती नागण मेरी 61
40 तेरे दर पे आया हूँ 62
41 अदबिच में या डुली नेैया 63
साधन योग
42 गुरु गम बातां न्यारी 64
43 गल में माला, माल में धागा 65
44 सोहं शबद मानै देवज्यो 66
45 तूं है कौन कहां से आया 67
46 माटी का है पिंजरा 68
47 थारी माया कोनी जाणी रे सतगुरु भगवान 69
48 साधु भाई खेती करवा ने चालो 70
49 फकीरी बिना राग बैराग चढ़े 71
50 संतो भाई ब्रंम्ह ज्ञान रो खटको 72
51 शबद का भेद 73
52 भजन करणा रे सुखमण मायने 74
53 उण रे संता री संगत 75
54 योगी रे गेले 76
55 संतो सोई योगी कहलावे 77
56 संतो सोई योगी फल पावे 78
57 करमा रा कोड़ लागा 79
58 पण्ड में खण्ड फरमाया 80
59 घट घट में उजियारा 81
60 गुरु शब्द री चोट 82
61 पश्चिम का किनारा 83
62 साधु भाई बादल रंगीला आया 84
63 भेद जाणे तो बाहर नहीं जावे 85
64 साधु रा केणा 86
65 अब कौन करे चतुराई 87
66 सत का नाम रटो मेरे मनवा 88
67 त्रिवेणी के घाट खड़ा हो 89
68 साधु भाई बेगम री गम कररे 90
69 साधु भाई सतगुरु ब्याह रचायो 91
70 सहारा योग का करके 92
चेतावनी
71 भेदी होवे तो भेद बतावे 93
72 थारा हिरदा में धर ध्यान 94
73 थोड़ो होच तो खरी 95
74 बिना भेदमन बाहर मत भटको 96
75 दिखाया भेद इस जग का 97
76 मन सुणले मारो हेलो 98
77 सुनाऊं ब्रह्म ज्ञान तुझको 99
78 मन पड़ियो भरमणा रे माय 100
79 लेणा सत-सत सार 101
80 रंगो निज रंग में जाकर 102
81 शबद तू खोजले नादान 103
82 वाग में मन मौजी, यो माली 104
83 मन मारा आखिर कोई नी थारो 105
84 हांचा ठिकाणा भूल गया तूं 106
85 बाली उमर गेले लाग 107
86 किये जा तूं जग में 108
87 मन रे सुण उपदेश हमारा 109
88 सतगुरु ने समझाई, 110
89 चल मनवा अपना देश 111
90 मना तुम बात सुण लेणा 112
91 गजब की चाल चली मेरा भाई 113
92 समझ मन धोखा में आय गयो 114
93 मन चेतन होकर रेणा 115
94 थारी गठरी ले गया चोर 116
95 मना मारा कैसे भूल्यो मेरा भाई 117
96 मना रे खोटी संगत 118
97 शुभ करमां ने पाळो 119
98 नमण में आंतरो 120
99 योगी का चेला 121
100 रूई थारो हफनो 122
101 मारा सत गुरु ब्रह्म समान 123
102 भाव राखजो भाई 124
103 थोड़ा थोड़ा राम रा भजन कर ले 125
104 पड़ गई गरब माई भूल 126
105 मोटी है मिनखां जूण 127
106 नींद में सुता 128
107 काया तेरी कंचन 129
108 मन रे गुरु वचन मत चूको 130
109 केईग्या केईग्या गुरां जी बातां 131
110 पीले प्याला ओ मतवाला 132
111 जिणो बोल रे रंगीला 133
112 भवसागर तिरणो छावे 134
113 जिणने खोज्या सोई जाणिया 135
114 मन रे आद गुरां ने मत भूलो 136
115 कोई किसी का हुआ ना 137
116 करी लेणा आतम ओलखाण 138
117 थारी मिनखां वाली देह 139
118 अब चेत रे मन चेत 140
119 समय का चक्र बड़ा बलवान 141
120 सत रे संगत करणो होरो 142
121 मन तूं सोच समझ अभिमानी 143
122 मन मारा जागतो रीजे रे मेरा भाई 144
123 माया रो जीवड़ो माया में रमियो 145
124 मन रे छोड़ जगत झंझाल 146
125 भोग्या भोग अपारी 147
126 मनरे ज्ञान गुरां जी से लेणा 148
127 कहा मन मान ले मेरा 149
128 ऐसी खेलो होली 150
129 हांचो शबद ने हेरो हिया में 151
130 नजारा देखलो दिल का 152
131 प्रभु का नाम ले प्यारे 153
132 समझ मन शब्द की कर लेणा पहचाण 154
133 क्यों सोया मद में 155
134 साधु भाई रण में लड़े कोई शूरा 156
135 मूरख क्यूं जलता मन में 157
136 निरमोही सतगुरु करना 158
137 साधु भाई जग झूंठा ब्रम्ह सांचा 159
138 संतों भाई मुरखां से मौन भलाई 160
139 हेली मारी चालो गुरां जी रा देश 161
140 कौन कहां से क्या लाया है 162
141 शबद की चोट लागता जाणि 163
142 काया-माया घणी लड़ी 164
143 गुरु गम रो गेलो 165
144 अचेती चेत जा जग में 166
145 सतगुरां सा मारी विपत्ति ने दूर करो 167
146 कठे हेरतो फरे 168
147 मन मेरा कोई ना जग में अपना 169
148 माने परदेशी मत जाण फकीरी 170
149 पांच तीनों में मत खोय फकीरी 171
150 अकल बड़ी के ब्रह्म ज्ञान 172
151 भजन विवेकी आतम ज्ञान रा 173
152 शबद लेणा सत सार रा 174
153 नुगरा नर में ज्ञान सिखाता 175
154 बगुला चुग गया मोती 176
155 भव सागरिया में नाव खड़ी 177
156 आ चोट कालजे खटके 178
157 चन्दा सूरज उगे 179
158 दो ईश्वर ना होते 180
159 निरंजन गढ़ रा गेला 181
160 चैतन होकर सुमिरन करले 182
161 जरा मन छोड़ के अभिमान 183
162 कर लेणा आतम ओलखाण 184
163 दस दिन पीहरिया में जाय, 185
164 मन तूं करले हरि रो ध्यान 186
165 माइला रो भेद कयो ना जाय 187
166 मुसाफिर नीन्द में सोया 188
पारख योग
167 सतगुरु का भेदी 189
168 अज्ञान बिना ज्ञान कहाँ से आया 190
169 हद की भोम चढ़े कोई शूरा 191
170 छोटा सा पंछी उड़ चला आसमान 192
171 माटी रो पिंजरो 193
172 राह ने पूछा राहगिर से कहां 194
173 करना हो जो करलो प्यारे 195
174 अंजनी के लाला 196
175 मनवा मेलता नी जाणी रे 197
176 मन मारा गुरु गम बात बिचारो 198
177 सतगुरु खोजी खोज विचारा 199
178 गुरां सा संत अजब दरसायो 200
179 साधु भाई मैं तो पूरब से आया 201
180 संता आप-आप से न्यारा 202
181 संता देश मेरा है दिवाना। 203
182 सत का नाम रटाया सतगुरु 204
183 शबद पलट सतगुरु ने खावे 205
184 सत गुरुजी माने आतम ज्ञान समझायो 206
185 गुरु दाता माने अमर सेलाणी दिनी 207
186 मन रे हरि हिरदे रा वासी 208
187 नर नारायण अन्तर नाई 209
188 जीना हो तो जिओ शान से 210
189 साधु भाई भक्ति बिगाड़ी पाखण्डी 211
190 साधु भाई अलख देश हमारा 212
191 सुणो भाई साधु पंथ अजीब निरालो 213
192 मारी सुरता सुहागण नारी 214
आनंद योग
193 अनहद की धुन लागी 215
194 ब्रह्म का भेद बता 216
195 सिमरण री गत न्यारी 217
196 साधु भाई निरगुण नाम निराला 218
197 निरभय देश हमारा 219
198 परदेशी पंछी देश अजब दिखायो 220
199 मनाजी मारी सोई रे आतमा 221
200 सगुण निरगुण दोई एक है 222
201 गगन मण्डल झूलो झूलतां रे जी 223
202 भाग वारा जागा हे 224
203 भजना में मन मारो लागो 225
204 निरगुण घर को छोड 226
205 अगम अगम की कह कर खोवे 227
206 भव दरिया में तिर के जाना 228
207 उजियाला ही उजियाला 229
208 सत संग रा गेला 230
209 अनहद में बाजा 231
210 फकीरी आदू पंथ 232
211 फकीरी भली मनड़ा ने मार 233
212 हेली मारी पियाजी वसे परदेश 234
213 गुरां सा आद बैराग बतावे 235
214 सतगुरु का बन्दा 236
215 गुरां जी मैं तो योग मगन 237
216 करमा आड़ो कांकरो 238
217 मन्दरिया के माय बैठ 239
218 आरती सतगुरु चरणन की 240
क्र. सं. भजन पेज संख्या
गणपति वंदना
1 मनाऊं सुण्ड सुण्डाला ने 23
2 साधु भाई इण विध गणपत ध्याया 24
गुरू महिमा
3 आओ जी गुरुदेव संगत 25
4 मारी अरजी सुणी ने वेगा आओ 26
5 शबद हरदे लागाजी 27
6 सतगुरु जग से न्यारा 28
7 गुरांसा सतसंग रा फल पाया 29
8 काया रा भेद बतावे 30
9 मारे हिरदे गुरां जी रो डेरो 31
10 गुरु सोहं शब्द ओलखाया 32
11 सतगुरु आया पावणा 33
12 मन समझ्या री वातां 34
13 चदर मारी रंग दिनी 35
14 गुरु गुण गावणा 36
15 संता जोई सोई सतगुरु ध्यावे 37
16 भाई लगन लगी है 38
17 गुरां रे परताप 39
वंदना
18 राम रटे सुख जाणुं 40
19 सेवा मारी मानी लो सदगुरु स्वामी 41
20 मन मेरा नहीं गम का खजाना 42
21 भव बन्धन काट दिज्यो 43
22 जाग मारी नागणी आसन छोड़ो, 44
23 जब से मैं आया 45
24 अकेला छोड़ दिना 46
25 बनाया तत्व का पिंजरा 47
26 बालाजी ने ध्यावे 48
27 भाव भक्ति ले आयो 49
28 गुरुबिन कोन मिटावे अंधियारा 50
29 मारा सतगुरु दीन दयाला 51
30 गुरु देव दया करो दाता 52
31 नागण मारी जागजा 53
32 हिरदा में नहीं ज्ञान 54
33 माने लागो घणो उमावो 55
34 साधु भाई मैं तो भगति के संग 56
35 पार मेरा गांव है 57
36 गुरुजी के गाँव में 58
37 गम की दुनियां में अकेला 59
38 सुनाने लगा, मैं बताने लगा 60
39 जागो सूती नागण मेरी 61
40 तेरे दर पे आया हूँ 62
41 अदबिच में या डुली नेैया 63
साधन योग
42 गुरु गम बातां न्यारी 64
43 गल में माला, माल में धागा 65
44 सोहं शबद मानै देवज्यो 66
45 तूं है कौन कहां से आया 67
46 माटी का है पिंजरा 68
47 थारी माया कोनी जाणी रे सतगुरु भगवान 69
48 साधु भाई खेती करवा ने चालो 70
49 फकीरी बिना राग बैराग चढ़े 71
50 संतो भाई ब्रंम्ह ज्ञान रो खटको 72
51 शबद का भेद 73
52 भजन करणा रे सुखमण मायने 74
53 उण रे संता री संगत 75
54 योगी रे गेले 76
55 संतो सोई योगी कहलावे 77
56 संतो सोई योगी फल पावे 78
57 करमा रा कोड़ लागा 79
58 पण्ड में खण्ड फरमाया 80
59 घट घट में उजियारा 81
60 गुरु शब्द री चोट 82
61 पश्चिम का किनारा 83
62 साधु भाई बादल रंगीला आया 84
63 भेद जाणे तो बाहर नहीं जावे 85
64 साधु रा केणा 86
65 अब कौन करे चतुराई 87
66 सत का नाम रटो मेरे मनवा 88
67 त्रिवेणी के घाट खड़ा हो 89
68 साधु भाई बेगम री गम कररे 90
69 साधु भाई सतगुरु ब्याह रचायो 91
70 सहारा योग का करके 92
चेतावनी
71 भेदी होवे तो भेद बतावे 93
72 थारा हिरदा में धर ध्यान 94
73 थोड़ो होच तो खरी 95
74 बिना भेदमन बाहर मत भटको 96
75 दिखाया भेद इस जग का 97
76 मन सुणले मारो हेलो 98
77 सुनाऊं ब्रह्म ज्ञान तुझको 99
78 मन पड़ियो भरमणा रे माय 100
79 लेणा सत-सत सार 101
80 रंगो निज रंग में जाकर 102
81 शबद तू खोजले नादान 103
82 वाग में मन मौजी, यो माली 104
83 मन मारा आखिर कोई नी थारो 105
84 हांचा ठिकाणा भूल गया तूं 106
85 बाली उमर गेले लाग 107
86 किये जा तूं जग में 108
87 मन रे सुण उपदेश हमारा 109
88 सतगुरु ने समझाई, 110
89 चल मनवा अपना देश 111
90 मना तुम बात सुण लेणा 112
91 गजब की चाल चली मेरा भाई 113
92 समझ मन धोखा में आय गयो 114
93 मन चेतन होकर रेणा 115
94 थारी गठरी ले गया चोर 116
95 मना मारा कैसे भूल्यो मेरा भाई 117
96 मना रे खोटी संगत 118
97 शुभ करमां ने पाळो 119
98 नमण में आंतरो 120
99 योगी का चेला 121
100 रूई थारो हफनो 122
101 मारा सत गुरु ब्रह्म समान 123
102 भाव राखजो भाई 124
103 थोड़ा थोड़ा राम रा भजन कर ले 125
104 पड़ गई गरब माई भूल 126
105 मोटी है मिनखां जूण 127
106 नींद में सुता 128
107 काया तेरी कंचन 129
108 मन रे गुरु वचन मत चूको 130
109 केईग्या केईग्या गुरां जी बातां 131
110 पीले प्याला ओ मतवाला 132
111 जिणो बोल रे रंगीला 133
112 भवसागर तिरणो छावे 134
113 जिणने खोज्या सोई जाणिया 135
114 मन रे आद गुरां ने मत भूलो 136
115 कोई किसी का हुआ ना 137
116 करी लेणा आतम ओलखाण 138
117 थारी मिनखां वाली देह 139
118 अब चेत रे मन चेत 140
119 समय का चक्र बड़ा बलवान 141
120 सत रे संगत करणो होरो 142
121 मन तूं सोच समझ अभिमानी 143
122 मन मारा जागतो रीजे रे मेरा भाई 144
123 माया रो जीवड़ो माया में रमियो 145
124 मन रे छोड़ जगत झंझाल 146
125 भोग्या भोग अपारी 147
126 मनरे ज्ञान गुरां जी से लेणा 148
127 कहा मन मान ले मेरा 149
128 ऐसी खेलो होली 150
129 हांचो शबद ने हेरो हिया में 151
130 नजारा देखलो दिल का 152
131 प्रभु का नाम ले प्यारे 153
132 समझ मन शब्द की कर लेणा पहचाण 154
133 क्यों सोया मद में 155
134 साधु भाई रण में लड़े कोई शूरा 156
135 मूरख क्यूं जलता मन में 157
136 निरमोही सतगुरु करना 158
137 साधु भाई जग झूंठा ब्रम्ह सांचा 159
138 संतों भाई मुरखां से मौन भलाई 160
139 हेली मारी चालो गुरां जी रा देश 161
140 कौन कहां से क्या लाया है 162
141 शबद की चोट लागता जाणि 163
142 काया-माया घणी लड़ी 164
143 गुरु गम रो गेलो 165
144 अचेती चेत जा जग में 166
145 सतगुरां सा मारी विपत्ति ने दूर करो 167
146 कठे हेरतो फरे 168
147 मन मेरा कोई ना जग में अपना 169
148 माने परदेशी मत जाण फकीरी 170
149 पांच तीनों में मत खोय फकीरी 171
150 अकल बड़ी के ब्रह्म ज्ञान 172
151 भजन विवेकी आतम ज्ञान रा 173
152 शबद लेणा सत सार रा 174
153 नुगरा नर में ज्ञान सिखाता 175
154 बगुला चुग गया मोती 176
155 भव सागरिया में नाव खड़ी 177
156 आ चोट कालजे खटके 178
157 चन्दा सूरज उगे 179
158 दो ईश्वर ना होते 180
159 निरंजन गढ़ रा गेला 181
160 चैतन होकर सुमिरन करले 182
161 जरा मन छोड़ के अभिमान 183
162 कर लेणा आतम ओलखाण 184
163 दस दिन पीहरिया में जाय, 185
164 मन तूं करले हरि रो ध्यान 186
165 माइला रो भेद कयो ना जाय 187
166 मुसाफिर नीन्द में सोया 188
पारख योग
167 सतगुरु का भेदी 189
168 अज्ञान बिना ज्ञान कहाँ से आया 190
169 हद की भोम चढ़े कोई शूरा 191
170 छोटा सा पंछी उड़ चला आसमान 192
171 माटी रो पिंजरो 193
172 राह ने पूछा राहगिर से कहां 194
173 करना हो जो करलो प्यारे 195
174 अंजनी के लाला 196
175 मनवा मेलता नी जाणी रे 197
176 मन मारा गुरु गम बात बिचारो 198
177 सतगुरु खोजी खोज विचारा 199
178 गुरां सा संत अजब दरसायो 200
179 साधु भाई मैं तो पूरब से आया 201
180 संता आप-आप से न्यारा 202
181 संता देश मेरा है दिवाना। 203
182 सत का नाम रटाया सतगुरु 204
183 शबद पलट सतगुरु ने खावे 205
184 सत गुरुजी माने आतम ज्ञान समझायो 206
185 गुरु दाता माने अमर सेलाणी दिनी 207
186 मन रे हरि हिरदे रा वासी 208
187 नर नारायण अन्तर नाई 209
188 जीना हो तो जिओ शान से 210
189 साधु भाई भक्ति बिगाड़ी पाखण्डी 211
190 साधु भाई अलख देश हमारा 212
191 सुणो भाई साधु पंथ अजीब निरालो 213
192 मारी सुरता सुहागण नारी 214
आनंद योग
193 अनहद की धुन लागी 215
194 ब्रह्म का भेद बता 216
195 सिमरण री गत न्यारी 217
196 साधु भाई निरगुण नाम निराला 218
197 निरभय देश हमारा 219
198 परदेशी पंछी देश अजब दिखायो 220
199 मनाजी मारी सोई रे आतमा 221
200 सगुण निरगुण दोई एक है 222
201 गगन मण्डल झूलो झूलतां रे जी 223
202 भाग वारा जागा हे 224
203 भजना में मन मारो लागो 225
204 निरगुण घर को छोड 226
205 अगम अगम की कह कर खोवे 227
206 भव दरिया में तिर के जाना 228
207 उजियाला ही उजियाला 229
208 सत संग रा गेला 230
209 अनहद में बाजा 231
210 फकीरी आदू पंथ 232
211 फकीरी भली मनड़ा ने मार 233
212 हेली मारी पियाजी वसे परदेश 234
213 गुरां सा आद बैराग बतावे 235
214 सतगुरु का बन्दा 236
215 गुरां जी मैं तो योग मगन 237
216 करमा आड़ो कांकरो 238
217 मन्दरिया के माय बैठ 239
218 आरती सतगुरु चरणन की 240
संसार में जन्म लेने वाले मनुष्यों को इस प्रकार से भी आसानी पूर्वक दो भागों में वर्गीकृत कर सकते हैं एक वो समूह जो इतिहास पढ़ता है और एक वे विरले व्यक्तित्व जो इतिहास में पढ़े जाते हैं।
मानव जाति का प्रत्येक सदस्य अपना प्रारब्ध, वर्तमान कार्य एवं भावी लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु जीवन पर्यन्त प्रयत्नशील रहता है।
सफर अनन्त इच्छाएं अनन्त फिर अनन्त की विशेषानुकम्पाओं एवं आव्हान के बिना कंटकाकीर्ण मार्गों पर भक्तों का दो कदम चल पाना भी असंभव प्रतीत होता है।
आध्यात्मिक सफर में तो सदगुरु के पर्याप्त मार्ग-दर्शन एवं आशीर्वाद प्राप्त भक्त भीड़ में भी वो भक्त हीरे सा चमकता हुआ अकेला ही चलता हुआ दिखाई देता है। चलने वाले सभी सूर्यास्त से पूर्व, अपने-अपने आशियाने में चले जाते हैं। मगर वो अजीब मुसाफिर अपने दिल के उजालों से ही कामयाबी के नए सूर्योदय के विश्वास पर चंाद सितारों का हमझोली एक-एक लम्हें का लुत्फ लेता हुआ सारी-सारी रात अकेला चलता है। वैसे तो हर युग की अपनी मशालें होती हैं मगर अध्यात्म के ऐसे अनेक अथक पथिकों की अनन्त श्रृंखलाओं में एक छोटी सी कड़ी के रुप में ष्अटलष् कवि महन्त बालक दास का नाम भी अपनी अमिट पहचान बना चुका है।
चित्तौड़गढ़ जिले का सुप्रसिद्ध कस्बा छीपों का आकोला जो कपड़ों पर रंगाई-छपाई के लिये अपनी देश विदेश में प्रसिद्धि पा चुका है। उसी गांव में कुम्हार जाति के एक श्रेष्ठ योगीराज श्री भेरा लाल कुम्हार माता उदी बाई की गृहस्थ वाटिका में सात भाई बहिनों में जन्में इस योगी पुत्र को शंकर नाम से पुकारा जाने लगा। योगीराज पिता ने भी अपनी योग-दृष्टि से अध्यात्म की खुशबू से तरबतर शंकर के नटखट बचपन को गहराई तक पहचान लिया।
बाल्यकाल में लम्बी-लम्बी जटाएं तिलक मालाओं से आपका मुस्कुराता हुआ बचपन एक अलग ही प्रकार के आकर्षण का केन्द्र बन चुका था। अध्ययन काल में विद्यालयों में होने वाली अन्त्याक्षरी प्रतियोगिताओं में स्व रचित आशु कविताएं प्रतियोगियों के लिये आश्चर्य के विषय बन जाया करती थीं।
10 वीं कक्षा उतीर्णोपरान्त वन विभाग में फोरेस्टर के पद पर सेवाएं देने लगे तब भी यदा-कदा लेखनी अपनी जादूमयी अभिव्यक्तियां मजलिस में दे दिया करती थीं। अध्यात्म के इस अथक साधक ने राजकीय नौकरी से त्याग-पत्र देकर साधना का मार्ग अपना लिया। रमता जोगी बहता पानी की उक्ति को ंचरितार्थ करते हुए विभिन्न गांवों में आपने अपनी साधनाएं अनवरत रखी। चित्तौड़ जिले के गाॅव भूपालसागर में हास्य कवि अमृत ‘वाणी’ एवं मेणार निवासी लक्ष्मी लाल मेंनारिया (उस्ताद) से सम्पर्क हुआ। भाटोली, नपानिया, भोपाल सागर, भावरी, राणा व तपोवन आश्रम कई स्थानों पर रह कर अध्यात्म अनुभूतियों को भजनों के माध्यम से अमृतमयी अभिव्यक्तियां देते रहे। कुछ समय आप मेनारिया की भाटोली भी रहे। जहां से नन्द लाल, किशन लाल, रामेश्वर सुथार, गौरी शंकर, ओंकार लाल आदि कई भक्त जनों से स्नेहमयी आत्मिक रिश्ते बन गए।
योग गुरु पिताजी द्वारा दी गई आध्यात्मिक शिक्षा के अनुसार सतत् साधना में लगे रहे। साथ ही नित नवीन अनुभूतियों को स्वरचित भजनों में रुपान्तरित करने की यह सतत प्रक्रिया लगभग 40 वर्षो तक अनवरत चलती रही। रचनाकार ने अपने अति दुर्लभ आध्यात्मिक अनुभवों की सहज अभिव्यक्ति हेतु विभिन्न प्रयासों में अपनी ओर से कोेई कसर बाकी नहीं छोड़ी। रुचिशील पाठकों के लिये पंचमेवा जैसी आपकी साहित्यिक रचनाएं परमोपयोगी प्रतीत होती है। हिन्दी, मारवाड़ी, मेवाड़ी, उर्दू इत्यादि भाषाओं के सम्मिश्रण से निर्मित आपके भजन नवलखा हार की भांति ऐसे स्व प्रकाशवान हंै जो अनन्त आध्यात्मिक रश्मियों से पाठक गणों के अन्तःकरणों को आलोकित करते रहंेगे।
भजनों के अन्तर्गत अभिव्यक्ति हेतु प्रयुक्त शैली आपकी अपनी है। सहज, सरल शब्दावलियों में रहस्यमयी अर्थगत गांभीर्य आपके साहित्य की अद्भुत विशेषता है। 40 वर्षो की अध्यात्मसाधना के परिणाम स्वरुप 200 से अधिक भजनों का संगीतमयी लघु संग्रह अनन्त प्रकाशवान हीरों के हार की भांति आपके अन्तः करण को बह्म लोक की स्वर्णिम आभा से सतत आलोकित करने हेतु बेताब है।
मानव जाति का प्रत्येक सदस्य अपना प्रारब्ध, वर्तमान कार्य एवं भावी लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु जीवन पर्यन्त प्रयत्नशील रहता है।
सफर अनन्त इच्छाएं अनन्त फिर अनन्त की विशेषानुकम्पाओं एवं आव्हान के बिना कंटकाकीर्ण मार्गों पर भक्तों का दो कदम चल पाना भी असंभव प्रतीत होता है।
आध्यात्मिक सफर में तो सदगुरु के पर्याप्त मार्ग-दर्शन एवं आशीर्वाद प्राप्त भक्त भीड़ में भी वो भक्त हीरे सा चमकता हुआ अकेला ही चलता हुआ दिखाई देता है। चलने वाले सभी सूर्यास्त से पूर्व, अपने-अपने आशियाने में चले जाते हैं। मगर वो अजीब मुसाफिर अपने दिल के उजालों से ही कामयाबी के नए सूर्योदय के विश्वास पर चंाद सितारों का हमझोली एक-एक लम्हें का लुत्फ लेता हुआ सारी-सारी रात अकेला चलता है। वैसे तो हर युग की अपनी मशालें होती हैं मगर अध्यात्म के ऐसे अनेक अथक पथिकों की अनन्त श्रृंखलाओं में एक छोटी सी कड़ी के रुप में ष्अटलष् कवि महन्त बालक दास का नाम भी अपनी अमिट पहचान बना चुका है।
चित्तौड़गढ़ जिले का सुप्रसिद्ध कस्बा छीपों का आकोला जो कपड़ों पर रंगाई-छपाई के लिये अपनी देश विदेश में प्रसिद्धि पा चुका है। उसी गांव में कुम्हार जाति के एक श्रेष्ठ योगीराज श्री भेरा लाल कुम्हार माता उदी बाई की गृहस्थ वाटिका में सात भाई बहिनों में जन्में इस योगी पुत्र को शंकर नाम से पुकारा जाने लगा। योगीराज पिता ने भी अपनी योग-दृष्टि से अध्यात्म की खुशबू से तरबतर शंकर के नटखट बचपन को गहराई तक पहचान लिया।
बाल्यकाल में लम्बी-लम्बी जटाएं तिलक मालाओं से आपका मुस्कुराता हुआ बचपन एक अलग ही प्रकार के आकर्षण का केन्द्र बन चुका था। अध्ययन काल में विद्यालयों में होने वाली अन्त्याक्षरी प्रतियोगिताओं में स्व रचित आशु कविताएं प्रतियोगियों के लिये आश्चर्य के विषय बन जाया करती थीं।
10 वीं कक्षा उतीर्णोपरान्त वन विभाग में फोरेस्टर के पद पर सेवाएं देने लगे तब भी यदा-कदा लेखनी अपनी जादूमयी अभिव्यक्तियां मजलिस में दे दिया करती थीं। अध्यात्म के इस अथक साधक ने राजकीय नौकरी से त्याग-पत्र देकर साधना का मार्ग अपना लिया। रमता जोगी बहता पानी की उक्ति को ंचरितार्थ करते हुए विभिन्न गांवों में आपने अपनी साधनाएं अनवरत रखी। चित्तौड़ जिले के गाॅव भूपालसागर में हास्य कवि अमृत ‘वाणी’ एवं मेणार निवासी लक्ष्मी लाल मेंनारिया (उस्ताद) से सम्पर्क हुआ। भाटोली, नपानिया, भोपाल सागर, भावरी, राणा व तपोवन आश्रम कई स्थानों पर रह कर अध्यात्म अनुभूतियों को भजनों के माध्यम से अमृतमयी अभिव्यक्तियां देते रहे। कुछ समय आप मेनारिया की भाटोली भी रहे। जहां से नन्द लाल, किशन लाल, रामेश्वर सुथार, गौरी शंकर, ओंकार लाल आदि कई भक्त जनों से स्नेहमयी आत्मिक रिश्ते बन गए।
योग गुरु पिताजी द्वारा दी गई आध्यात्मिक शिक्षा के अनुसार सतत् साधना में लगे रहे। साथ ही नित नवीन अनुभूतियों को स्वरचित भजनों में रुपान्तरित करने की यह सतत प्रक्रिया लगभग 40 वर्षो तक अनवरत चलती रही। रचनाकार ने अपने अति दुर्लभ आध्यात्मिक अनुभवों की सहज अभिव्यक्ति हेतु विभिन्न प्रयासों में अपनी ओर से कोेई कसर बाकी नहीं छोड़ी। रुचिशील पाठकों के लिये पंचमेवा जैसी आपकी साहित्यिक रचनाएं परमोपयोगी प्रतीत होती है। हिन्दी, मारवाड़ी, मेवाड़ी, उर्दू इत्यादि भाषाओं के सम्मिश्रण से निर्मित आपके भजन नवलखा हार की भांति ऐसे स्व प्रकाशवान हंै जो अनन्त आध्यात्मिक रश्मियों से पाठक गणों के अन्तःकरणों को आलोकित करते रहंेगे।
भजनों के अन्तर्गत अभिव्यक्ति हेतु प्रयुक्त शैली आपकी अपनी है। सहज, सरल शब्दावलियों में रहस्यमयी अर्थगत गांभीर्य आपके साहित्य की अद्भुत विशेषता है। 40 वर्षो की अध्यात्मसाधना के परिणाम स्वरुप 200 से अधिक भजनों का संगीतमयी लघु संग्रह अनन्त प्रकाशवान हीरों के हार की भांति आपके अन्तः करण को बह्म लोक की स्वर्णिम आभा से सतत आलोकित करने हेतु बेताब है।
चेतन प्रकाशन
लेखकीय
आदिकाल से ही मनुष्य जाति चिन्तन शील, कर्मशील एवं हर प्रकार की बाधा पर विजय पाने के लिये सतत् प्रयत्नशील रही, जिनके परिणामस्वरुप ही बहुरंगी दुनियां तत्कालीन रचनाओं के कुछ नये स्वरों को सम्मिलित करती हुई हर रोज सुबह अपने नैसर्गिक रहस्यमयी कलरव में सतत अभिवृद्धियां करती रही।
चलते-चलते कुछ ताकतवर काफिलों ने अपने अन्दरुनी खजानों को पहचान लिया। तपस्या, साधना, भक्ति और निरन्तर गहन ध्यान करते हुए कई जितेन्द्रिय आत्म संयमी हुए और अहम् का परित्याग करते हुए अहंमब्रह्मास्मि तक पहुंचे। वे अपने-अपने अनुयायियों को कभी प्रत्यक्ष कभी परोक्ष में स्व निर्मित मोक्ष-मार्गों का हर संभव सरलीकरण करते हुए व्याख्यान के मालाओं के माध्यम से अनन्त का अक्षय उपहार के माध्यम से हस्तान्तरित करते रहे। सभी के अपने-अपने निजी चिन्तन और अपनी निजी भाषाएॅ रहीं।
स्वाद प्रेमियों के अनुसार षटरस भोजन से निर्मित छप्पन भोग की भांति हर व्यंजन की अपनी एक स्वाद युक्त अलग सी पहचान बनती रही। और इसी तरह बढ़ती-बढ़ती अनन्त की अभिव्यक्ति की श्रृंखलाएॅ भी अनन्त हो गई। निरीक्षण-परीक्षण, और अवलोकनकर्ताओं में जो कोटि-कोटि मिठाइयों के स्तरों का मूल्याकंन मात्र जिव्हा के स्वादों के आधार पर ही करने लग गये है। वे लोग साधना के अन्तर्गत स्वार्थ साधना की ओर उन्मूख होकर बाह्य सौन्दर्य के सारहीन नीत नवीन श्रृगांर में ही इतने लीन हो गए की गोलाकार व्यर्थ सड़कों पर चलते-चलते पीढ़ियां गुजर गई और निकलते हुए उत्साही नतीजे शून्य के हमसफर बनकर उसी शान शौकत से शोर गुल के साथ पुनः चल पड़े।
उसके विपरीत द्वितीय श्रेणी के वे साधक जिनके मकसद मात्र मिठाई की मिठास, (शक्कर की उपस्थिति) से थे। न कि बनाने के तरीकों से साधकों के वे संगठन रामबाण की तरहां समानान्तर पथ पर तीव्रगति से आगे बढ़ते रहे। यह प्रारब्ध का ही निर्धारण है कि जन्म के साथ ही एक ही परिवार और समाज में जन्में किस भाई को कौन सा मार्ग मिलेगा । कुछ साहित्यकार सुन्दर और क्लिष्ठ भाषा से सामान्य अभिव्यक्तियों को अतिसुन्दर बनाने का प्रयास तो भरपूर करते है किन्तु कृत्रिम वर्षा की तरह वे लाभ दायक सिद्ध नहीं हो पातें।
कुछ साहित्यकारांे की मौलिक एवं सुन्दर अभिव्यक्तियां भाषा को कालजयी सौन्दर्य प्रदान करती रहती है। राजस्थानी मिट्टी के कण-कण में समाहित शक्ति एवं भक्ति की युगल खुशबुओं से विश्व इतिहास के अन्तर्गत हजारों प्रकार के निष्पक्ष अनुसंधानकत्र्ताओं की हर सुबह से शाम तक और हर शाम से सुबह तक स्वागत की थाली सजाकर एक पांव पर खड़ी अपलक प्रतीक्षाकुल है।
भक्ति की अभिव्यक्तियां अधिकांशतः बहुत रहस्यमयी रही है। भाषा का सरल स्वरूप छोटे-मोटे कार्यांे के लिये होता है। किन्तु पहेलियों को हल करने का स्वभाव साधकों के लिये गुरु ज्ञान का सच्चा अनुसरण करने वालों के लिये कदम-कदम पर यानि हर मौड़ पर प्रकाश-स्तम्भ की भूमिकाएं निभाते हैं। मैंने भी फोरेस्टर पद की राजकीय नौकरी छोड़ कर योग साधना के कंटकाकीण मार्ग को इस दृढ़ संकल्प के द्वारा आत्मसात किया कि अध्यात्म के सफर में सामान्य सी हवाएं, आंधी, तूफान, चक्रवात, मेघगर्जन, नदी-नाले, हिंसक जानवर, ऊंचे ऊंचे पहाड़ और गहरी गहरी खांईयां सच्चे समर्थक क्रूर आलोचक एवं आस्थाहीन संकट आदि कितने ही कितनी ही बार आएं और आएंगे मगर मेरे संकल्पों के अटल दीपक को नहीं बुझा सकेंगे। तीन वर्णो से निर्मित ष्अटलष् शब्द ने हीं इस बालक दास को गुरु-कृपा एवं अंजनी लाला का ऐसा कृपा-पात्र बना दिया कि मैं अपनी तुतलाती वाणी और दौड़ने की आतुरता से व्याकुल होने लगा। इसी से प्रभावित होकर मैंने अपना उपनाम बालक दास ष्अटलष् रख लिया। छोटे से बालक की तरहां वक्त ने अचानक करवट ली राजकीय नौकरी छोड़ कर योग के संयोग से तत्काल प्रभाव योग-मार्ग पर चल पड़ा।
यूं तो अग्रज-अनुजों की श्रृंखलाएं असीमित होती है। किन्तु हनुमान जी की कृपा से कुछ ऐसे श्रावक मिले जो मेरे मन मयूर के स्वरों को समझते-समझते स्वर में स्वर मिलाने लगे। सर्वाधिक प्रमुख है-चित्तौड़ जिले की बड़ीसादड़ी तहसील के पास भाटोली, (ब्राह्मणों की) निवासी श्री नन्द जी, श्री किशन जी, श्री सोहन जी, श्री गौरी शंकर जी, श्री ओंकार जी, श्री रामेश्वर सुथार, चित्तौडगढ़ निवासी कविराज अमृत ष्वाणीष्, मेणार निवासी लक्ष्मी लाल मेनारिया (उस्ताद) एवं शंकर जी जयपुर वाले इत्यादि के लिये यह आत्मीयता दिनों-दिन बढ़ती रही।
कलम मुसीबतों का सर कलम करती हुई बिना नहाए धोए बिना श्रृंगार किये मेरे दैनिक सफर के अजीबों गरीब करिश्में, ताजुब और तजूर्बो के रुहानी खयालों को तरन्नुम के मुताबिक स्वरों के अलग-अलग साॅचों में कोटि-कोटि भजनों को ढ़ालने के लिये सदैव मचलती रही। भाषा के लुत्फकी नहीं मकसद के हर मुनासिब खुलासे को तवज्जू देते हुए उसे इस ताकत के साथ रवानगियां दी कि आंधी तूफानों को नेस्तनाबूद करती हुई मुसाफिरों की सलामती के साथ कश्तियां अपनी मंजिलों पर पहुंच कर ही आराम फरमाने लगी।
मेरे भजन कितने वजनदार साबित होंगे यह केवल भविष्य की तराजू ही जानती है। मैंने यह रचनाएं मेरी शान शौकत में इजाफे के वास्ते कभी नहीं की। बेशक इन भजनों के खयालात यह तमाम रुहानी खजानों के वो बेताब मचलते हीरे हंै जो खुद-ब-खुद गायकी और तरन्नुम के साॅचों में ढ़ल कर ही जिन्हांेने सुकुन की साॅस ली। यह मात्र भजन ही नहीं यह मेरे मानस के सच्चे आंशिक अवतार है। जो मुझे औलादों की तरह बेहद अजीज है।
कालान्तर में कभी-कभी कुछ लोग बेशक यह कहेंगे कि वाह यार! वो भी क्या चीज थी। इन भजनों की पंक्तियां साधना के मार्गो में कभी-कभी बैसाखी बन कर इस तरह करीब आ जाएगी कि लड़खड़ाते पांवों को अचानक गिरने से बचा लेगी।
मैं अमावस्या की घोर काली रात का एक छोटा सा जुगनू हूं जो आप सभी साधको के लिये सुनहरे स्वर्णिम सूर्योदय के वास्ते कोटि-कोटि शुभकामनाएं देता हूॅ।
‘अटल’ कवि बालक दास
आदिकाल से ही मनुष्य जाति चिन्तन शील, कर्मशील एवं हर प्रकार की बाधा पर विजय पाने के लिये सतत् प्रयत्नशील रही, जिनके परिणामस्वरुप ही बहुरंगी दुनियां तत्कालीन रचनाओं के कुछ नये स्वरों को सम्मिलित करती हुई हर रोज सुबह अपने नैसर्गिक रहस्यमयी कलरव में सतत अभिवृद्धियां करती रही।
चलते-चलते कुछ ताकतवर काफिलों ने अपने अन्दरुनी खजानों को पहचान लिया। तपस्या, साधना, भक्ति और निरन्तर गहन ध्यान करते हुए कई जितेन्द्रिय आत्म संयमी हुए और अहम् का परित्याग करते हुए अहंमब्रह्मास्मि तक पहुंचे। वे अपने-अपने अनुयायियों को कभी प्रत्यक्ष कभी परोक्ष में स्व निर्मित मोक्ष-मार्गों का हर संभव सरलीकरण करते हुए व्याख्यान के मालाओं के माध्यम से अनन्त का अक्षय उपहार के माध्यम से हस्तान्तरित करते रहे। सभी के अपने-अपने निजी चिन्तन और अपनी निजी भाषाएॅ रहीं।
स्वाद प्रेमियों के अनुसार षटरस भोजन से निर्मित छप्पन भोग की भांति हर व्यंजन की अपनी एक स्वाद युक्त अलग सी पहचान बनती रही। और इसी तरह बढ़ती-बढ़ती अनन्त की अभिव्यक्ति की श्रृंखलाएॅ भी अनन्त हो गई। निरीक्षण-परीक्षण, और अवलोकनकर्ताओं में जो कोटि-कोटि मिठाइयों के स्तरों का मूल्याकंन मात्र जिव्हा के स्वादों के आधार पर ही करने लग गये है। वे लोग साधना के अन्तर्गत स्वार्थ साधना की ओर उन्मूख होकर बाह्य सौन्दर्य के सारहीन नीत नवीन श्रृगांर में ही इतने लीन हो गए की गोलाकार व्यर्थ सड़कों पर चलते-चलते पीढ़ियां गुजर गई और निकलते हुए उत्साही नतीजे शून्य के हमसफर बनकर उसी शान शौकत से शोर गुल के साथ पुनः चल पड़े।
उसके विपरीत द्वितीय श्रेणी के वे साधक जिनके मकसद मात्र मिठाई की मिठास, (शक्कर की उपस्थिति) से थे। न कि बनाने के तरीकों से साधकों के वे संगठन रामबाण की तरहां समानान्तर पथ पर तीव्रगति से आगे बढ़ते रहे। यह प्रारब्ध का ही निर्धारण है कि जन्म के साथ ही एक ही परिवार और समाज में जन्में किस भाई को कौन सा मार्ग मिलेगा । कुछ साहित्यकार सुन्दर और क्लिष्ठ भाषा से सामान्य अभिव्यक्तियों को अतिसुन्दर बनाने का प्रयास तो भरपूर करते है किन्तु कृत्रिम वर्षा की तरह वे लाभ दायक सिद्ध नहीं हो पातें।
कुछ साहित्यकारांे की मौलिक एवं सुन्दर अभिव्यक्तियां भाषा को कालजयी सौन्दर्य प्रदान करती रहती है। राजस्थानी मिट्टी के कण-कण में समाहित शक्ति एवं भक्ति की युगल खुशबुओं से विश्व इतिहास के अन्तर्गत हजारों प्रकार के निष्पक्ष अनुसंधानकत्र्ताओं की हर सुबह से शाम तक और हर शाम से सुबह तक स्वागत की थाली सजाकर एक पांव पर खड़ी अपलक प्रतीक्षाकुल है।
भक्ति की अभिव्यक्तियां अधिकांशतः बहुत रहस्यमयी रही है। भाषा का सरल स्वरूप छोटे-मोटे कार्यांे के लिये होता है। किन्तु पहेलियों को हल करने का स्वभाव साधकों के लिये गुरु ज्ञान का सच्चा अनुसरण करने वालों के लिये कदम-कदम पर यानि हर मौड़ पर प्रकाश-स्तम्भ की भूमिकाएं निभाते हैं। मैंने भी फोरेस्टर पद की राजकीय नौकरी छोड़ कर योग साधना के कंटकाकीण मार्ग को इस दृढ़ संकल्प के द्वारा आत्मसात किया कि अध्यात्म के सफर में सामान्य सी हवाएं, आंधी, तूफान, चक्रवात, मेघगर्जन, नदी-नाले, हिंसक जानवर, ऊंचे ऊंचे पहाड़ और गहरी गहरी खांईयां सच्चे समर्थक क्रूर आलोचक एवं आस्थाहीन संकट आदि कितने ही कितनी ही बार आएं और आएंगे मगर मेरे संकल्पों के अटल दीपक को नहीं बुझा सकेंगे। तीन वर्णो से निर्मित ष्अटलष् शब्द ने हीं इस बालक दास को गुरु-कृपा एवं अंजनी लाला का ऐसा कृपा-पात्र बना दिया कि मैं अपनी तुतलाती वाणी और दौड़ने की आतुरता से व्याकुल होने लगा। इसी से प्रभावित होकर मैंने अपना उपनाम बालक दास ष्अटलष् रख लिया। छोटे से बालक की तरहां वक्त ने अचानक करवट ली राजकीय नौकरी छोड़ कर योग के संयोग से तत्काल प्रभाव योग-मार्ग पर चल पड़ा।
यूं तो अग्रज-अनुजों की श्रृंखलाएं असीमित होती है। किन्तु हनुमान जी की कृपा से कुछ ऐसे श्रावक मिले जो मेरे मन मयूर के स्वरों को समझते-समझते स्वर में स्वर मिलाने लगे। सर्वाधिक प्रमुख है-चित्तौड़ जिले की बड़ीसादड़ी तहसील के पास भाटोली, (ब्राह्मणों की) निवासी श्री नन्द जी, श्री किशन जी, श्री सोहन जी, श्री गौरी शंकर जी, श्री ओंकार जी, श्री रामेश्वर सुथार, चित्तौडगढ़ निवासी कविराज अमृत ष्वाणीष्, मेणार निवासी लक्ष्मी लाल मेनारिया (उस्ताद) एवं शंकर जी जयपुर वाले इत्यादि के लिये यह आत्मीयता दिनों-दिन बढ़ती रही।
कलम मुसीबतों का सर कलम करती हुई बिना नहाए धोए बिना श्रृंगार किये मेरे दैनिक सफर के अजीबों गरीब करिश्में, ताजुब और तजूर्बो के रुहानी खयालों को तरन्नुम के मुताबिक स्वरों के अलग-अलग साॅचों में कोटि-कोटि भजनों को ढ़ालने के लिये सदैव मचलती रही। भाषा के लुत्फकी नहीं मकसद के हर मुनासिब खुलासे को तवज्जू देते हुए उसे इस ताकत के साथ रवानगियां दी कि आंधी तूफानों को नेस्तनाबूद करती हुई मुसाफिरों की सलामती के साथ कश्तियां अपनी मंजिलों पर पहुंच कर ही आराम फरमाने लगी।
मेरे भजन कितने वजनदार साबित होंगे यह केवल भविष्य की तराजू ही जानती है। मैंने यह रचनाएं मेरी शान शौकत में इजाफे के वास्ते कभी नहीं की। बेशक इन भजनों के खयालात यह तमाम रुहानी खजानों के वो बेताब मचलते हीरे हंै जो खुद-ब-खुद गायकी और तरन्नुम के साॅचों में ढ़ल कर ही जिन्हांेने सुकुन की साॅस ली। यह मात्र भजन ही नहीं यह मेरे मानस के सच्चे आंशिक अवतार है। जो मुझे औलादों की तरह बेहद अजीज है।
कालान्तर में कभी-कभी कुछ लोग बेशक यह कहेंगे कि वाह यार! वो भी क्या चीज थी। इन भजनों की पंक्तियां साधना के मार्गो में कभी-कभी बैसाखी बन कर इस तरह करीब आ जाएगी कि लड़खड़ाते पांवों को अचानक गिरने से बचा लेगी।
मैं अमावस्या की घोर काली रात का एक छोटा सा जुगनू हूं जो आप सभी साधको के लिये सुनहरे स्वर्णिम सूर्योदय के वास्ते कोटि-कोटि शुभकामनाएं देता हूॅ।
‘अटल’ कवि बालक दास
दो शब्द
सभी नदियां जिस तरहां अपने जिगर ष्सागरष् से मिलने के वास्ते मिलनातुरता की गजलें, गीत, शायरी-रुबाईयों को खुद ही की ईजा़द की गई तरन्नुम में बेताबी के साथ बड़े ही खुश मिजाज़ में किनारों से पक्की दोस्ती फिर भी तनिक शरमाती हुई सी अपनी मस्ती में गुनगुनाती हुई रफ्ता-रफ्ता हर दिन, रात-दिन बिना एक पल रुके जिस जिन्दादिली मुश्तेदी और बैचेनी के साथ पल-पल, आगे से आगे बढ़ती रहती है, ठीक उसी तरहां आत्मा भी परमात्मा से यानि की मन अपने मालिक से रुबरु होने के लिए जन्मों-जन्मों के बेहद लम्बे सफर को अपनी हद के मुताबिक तय करने की हर मुनासिब कोशिशें करती रहती है।
तमाम दिमागी मशक्कत का नतीजा शायद इतना ही निकला है कि हर अन्दरुनी आंख ताजिन्दगी उन दिलकश नजारों की दुनियां की एक झलक के करीबी दीदार के खातिर गजब की इतनी जबरदस्त तलबगार हो जाती है कि जमाने में रहती हुई भी जमाने के मिजाज से बिल्कुल ही बे असर होकर ऐसे जिन्दगी जीती जैसे मच्छलियां पानी में रहती है। वे देखा करती अपनी मंजिल को जैसे अर्जुन देखता था चिड़िया की आंख को। हालांकी वे आंखें भी हकीकत जानती है कि उस दुनियां के हजारों नजारों की एक झलक को भी हू ब हू बयां करना दुनियां की हर कलम के लिए आज तलक नामुमकीन है, मगर अक्सर जिन्दा दिल कलम का दिल भी इस कदर होता है कि हर वक्त कुछ कहे बगैर और कुछ लिखे बगैर कुछ ना कुछ किए बगैर उसे तसल्ली और सुकून मिलता ही नहीं।
चित्तौड़गढ़ जिले की बड़ीसादड़ी तहसील के अंतर्गत, ब्रह्मकुल की पावन नगरी जिसे मेनारियों की भाटोली के नाम से सर्वत्र जाना जाता है। इस गाॅव की बसावट ही ऐसी है कि किसी भी मार्ग से पहुंचनें का प्रयास करो लगभग 5-7 किमी तो कच्चे रास्तों से सफर करना ही पड़ता है। इस दूरी की वजह से भी यह गांव सदैव अपने प्राचीन संस्कारों सहित अध्यात्म व ब्रह्मज्ञान की विभिन्न खुशबुओं से सराबोर रहता है।
चित्तौड़गढ़ जिले के गांव छीपों का आकोला में जन्में एक ब्रह्म योगी संत के आगमन से हमारे गाॅव के स्वर्ण युग का शुभारम्भ हुआ। गुरुदेव ब्रह्मयोगी ष्अटलष् कवि बालकदास के भाटोली आगमन से पुराने अध्यात्म प्रेमियों को ऐसे नवीन दिशा-निर्देश युक्त ज्ञान-अनुभव, भजन साहित्यिक एवं आध्यात्मिक चर्चाओं के लगातार अनन्त लाभ प्राप्त होते रहें कि हमारी अबूझ ज्ञान-पिपासा तेजी से शांत होती हुई सी प्रतीत हुई और शीघ्र ही स्थानीय भक्तजनों का एक ऐसा मण्डल बन गया कि अब आए दिन आध्यात्मिक चर्चाएं, स्वानुभव, भजन, कीर्तन इत्यादि अध्यात्मसोपानों को लेकर घर-घर बैठके जमने लगी। पांच-सात वर्षो के दौरान कई आध्यात्मिक सोपानों को पार करते हुए किशन, नन्द लाल, रामेश्वर लाल, सोहन, ओंकार लाल, श्रीलाल, नोक लाल, शंकर लाल, गौरी शंकर, माधव लाल, चुन्नी लाल, उदय लाल, और मांगी लाल इत्यादि कई भक्तों के स्नेहिल व्यवहार सदाचार युक्त लंबे सतसंगों से ष्घर बैठे गंगा आईष् वाली कहावत चरितार्थ होने लगी।
शनैः-शनैः इस ब्रह्म मण्डली की सामूहिक सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती गई। ब्रह्मज्ञानी संत कवि योगी कुलश्रेष्ठ श्री अटल कवि बालकदास गांव भाटोली में ही 7 वर्षो तलक लगातार रह कर इन हीरों को तराशते रहे।
कुछ साधनामय समय बीता कि अध्यात्मज्ञान की अनन्त रश्मियों ने भक्तों को नया जीवन-दर्शन चिंतन ही नहीं नवीन जीवन शैली भी प्रदान की। सभी के अपने-अपने अनुभव सम्मिलित होते रहे और गुरुवर ने भी अटल कवि बालकदास के नाम से अपने स्वानुभव जनित मौलिक उद्गारों को भजनों के माध्यम से संगीतमयी अभिव्यक्तियां देने का क्रम जारी रखा।
उन्हीं भजनों की सतत् श्रृंखलाओंकी कुछ लड़ियां, यानिकी कुछ फूल और गमलें ही नहीं पूरी महकती हुई वाटिकाएं अदृश्य का वृहत संग्रहालय अनुभवों का यह साहित्यिक संगीतमय खजाना जीवन को सुवासित करने के लिए आज आपके कर कमलों में शोभायमान है। कई अनन्त जिज्ञासु पाठक गण मय परिवार के लिए यह पुस्तक प्रेरणास्त्रोत के रुप में दीपक की भांति उपयोग में लेते-लेते अध्यात्म मार्ग को निष्कंटक बनाते हुए ष्अहं ब्रह्मास्मि के अन्तिम सोपान तक की सफल यात्रा हेतु अनवरत आगे बढ़ने के लिए बेशक लाजवाब और मददगार सिद्ध होगी। इन्हीं कोटि-कोटि शुभकामनाओं के साथ आपके मंगलाकांक्षी। श्री गुरुवर के चरणों में शत्-शत् नमन।
सभी नदियां जिस तरहां अपने जिगर ष्सागरष् से मिलने के वास्ते मिलनातुरता की गजलें, गीत, शायरी-रुबाईयों को खुद ही की ईजा़द की गई तरन्नुम में बेताबी के साथ बड़े ही खुश मिजाज़ में किनारों से पक्की दोस्ती फिर भी तनिक शरमाती हुई सी अपनी मस्ती में गुनगुनाती हुई रफ्ता-रफ्ता हर दिन, रात-दिन बिना एक पल रुके जिस जिन्दादिली मुश्तेदी और बैचेनी के साथ पल-पल, आगे से आगे बढ़ती रहती है, ठीक उसी तरहां आत्मा भी परमात्मा से यानि की मन अपने मालिक से रुबरु होने के लिए जन्मों-जन्मों के बेहद लम्बे सफर को अपनी हद के मुताबिक तय करने की हर मुनासिब कोशिशें करती रहती है।
तमाम दिमागी मशक्कत का नतीजा शायद इतना ही निकला है कि हर अन्दरुनी आंख ताजिन्दगी उन दिलकश नजारों की दुनियां की एक झलक के करीबी दीदार के खातिर गजब की इतनी जबरदस्त तलबगार हो जाती है कि जमाने में रहती हुई भी जमाने के मिजाज से बिल्कुल ही बे असर होकर ऐसे जिन्दगी जीती जैसे मच्छलियां पानी में रहती है। वे देखा करती अपनी मंजिल को जैसे अर्जुन देखता था चिड़िया की आंख को। हालांकी वे आंखें भी हकीकत जानती है कि उस दुनियां के हजारों नजारों की एक झलक को भी हू ब हू बयां करना दुनियां की हर कलम के लिए आज तलक नामुमकीन है, मगर अक्सर जिन्दा दिल कलम का दिल भी इस कदर होता है कि हर वक्त कुछ कहे बगैर और कुछ लिखे बगैर कुछ ना कुछ किए बगैर उसे तसल्ली और सुकून मिलता ही नहीं।
चित्तौड़गढ़ जिले की बड़ीसादड़ी तहसील के अंतर्गत, ब्रह्मकुल की पावन नगरी जिसे मेनारियों की भाटोली के नाम से सर्वत्र जाना जाता है। इस गाॅव की बसावट ही ऐसी है कि किसी भी मार्ग से पहुंचनें का प्रयास करो लगभग 5-7 किमी तो कच्चे रास्तों से सफर करना ही पड़ता है। इस दूरी की वजह से भी यह गांव सदैव अपने प्राचीन संस्कारों सहित अध्यात्म व ब्रह्मज्ञान की विभिन्न खुशबुओं से सराबोर रहता है।
चित्तौड़गढ़ जिले के गांव छीपों का आकोला में जन्में एक ब्रह्म योगी संत के आगमन से हमारे गाॅव के स्वर्ण युग का शुभारम्भ हुआ। गुरुदेव ब्रह्मयोगी ष्अटलष् कवि बालकदास के भाटोली आगमन से पुराने अध्यात्म प्रेमियों को ऐसे नवीन दिशा-निर्देश युक्त ज्ञान-अनुभव, भजन साहित्यिक एवं आध्यात्मिक चर्चाओं के लगातार अनन्त लाभ प्राप्त होते रहें कि हमारी अबूझ ज्ञान-पिपासा तेजी से शांत होती हुई सी प्रतीत हुई और शीघ्र ही स्थानीय भक्तजनों का एक ऐसा मण्डल बन गया कि अब आए दिन आध्यात्मिक चर्चाएं, स्वानुभव, भजन, कीर्तन इत्यादि अध्यात्मसोपानों को लेकर घर-घर बैठके जमने लगी। पांच-सात वर्षो के दौरान कई आध्यात्मिक सोपानों को पार करते हुए किशन, नन्द लाल, रामेश्वर लाल, सोहन, ओंकार लाल, श्रीलाल, नोक लाल, शंकर लाल, गौरी शंकर, माधव लाल, चुन्नी लाल, उदय लाल, और मांगी लाल इत्यादि कई भक्तों के स्नेहिल व्यवहार सदाचार युक्त लंबे सतसंगों से ष्घर बैठे गंगा आईष् वाली कहावत चरितार्थ होने लगी।
शनैः-शनैः इस ब्रह्म मण्डली की सामूहिक सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती गई। ब्रह्मज्ञानी संत कवि योगी कुलश्रेष्ठ श्री अटल कवि बालकदास गांव भाटोली में ही 7 वर्षो तलक लगातार रह कर इन हीरों को तराशते रहे।
कुछ साधनामय समय बीता कि अध्यात्मज्ञान की अनन्त रश्मियों ने भक्तों को नया जीवन-दर्शन चिंतन ही नहीं नवीन जीवन शैली भी प्रदान की। सभी के अपने-अपने अनुभव सम्मिलित होते रहे और गुरुवर ने भी अटल कवि बालकदास के नाम से अपने स्वानुभव जनित मौलिक उद्गारों को भजनों के माध्यम से संगीतमयी अभिव्यक्तियां देने का क्रम जारी रखा।
उन्हीं भजनों की सतत् श्रृंखलाओंकी कुछ लड़ियां, यानिकी कुछ फूल और गमलें ही नहीं पूरी महकती हुई वाटिकाएं अदृश्य का वृहत संग्रहालय अनुभवों का यह साहित्यिक संगीतमय खजाना जीवन को सुवासित करने के लिए आज आपके कर कमलों में शोभायमान है। कई अनन्त जिज्ञासु पाठक गण मय परिवार के लिए यह पुस्तक प्रेरणास्त्रोत के रुप में दीपक की भांति उपयोग में लेते-लेते अध्यात्म मार्ग को निष्कंटक बनाते हुए ष्अहं ब्रह्मास्मि के अन्तिम सोपान तक की सफल यात्रा हेतु अनवरत आगे बढ़ने के लिए बेशक लाजवाब और मददगार सिद्ध होगी। इन्हीं कोटि-कोटि शुभकामनाओं के साथ आपके मंगलाकांक्षी। श्री गुरुवर के चरणों में शत्-शत् नमन।
अटल मण्डल
नन्द लाल मेनारिया
किशन लाल मेनारिय
नन्द लाल मेनारिया
किशन लाल मेनारिय