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Description
लेखकीय
दस हजार वर्ष पूर्व भगवान शंकर माता पार्वती के समक्ष जिस स्थान, सम्प्रदाय और संत के बारे में भविष्यवाणी कर चुके थे, आज इस छोटेसे कलमकार ने उस महान सात्विक व्यक्तित्व वाले जीवनोपदेश को काव्य में ढालने का प्रयास किया है । जिनके स्पर्श मात्र से कवि अमृत ‘वाणी’ का यह काव्य संग्रह अमृत-कलश के समान लोकोपयोगी प्रतीत होता है। कुछ दिनों पूर्व संयोगवश राम स्नेही सम्प्रदाय (शाहपुरा) के प्रथम संत परम पूज्य गुरुदेव श्रीरामचरणजी महाराज की जीवनी पढ़ने का सौभाग्य मिला । पढ़ते -पढ़ते मैं गद्-गद् हो गया । कई बार नेत्रों से आंसू छलक पड़े। गुरुदेव की कृपा-दृष्टि से मन-मस्तिष्क में यह विचार आया कि आपकी यशस्वी कीर्तिमय जीवनी को आधार बनाते हुए कुछ लोकप्रिय साहित्य का सृजन करू । इससे पूर्व मैं तीन चालीसा काव्यों की रचना कर चुका था इसलिए मेरे मन मस्तिष्क में यही चिन्तन उभर कर आया कि क्यों न इस महान विभूति पर भी एक चालीसा काव्य रचा जाए । गुरूदेव की अपार कृपा से यह कार्य शीघ्र ही पूर्ण हो गया।
श्रीश्री 1008 श्रीरामचरणजी महाराज का भक्तिमय जीवन कई वर्षों से हम सभी के लिए एक प्रकाश स्तम्भ की भांति पथ प्रदर्शक रहा है। उनके विभिन्न चमत्कार पूर्ण प्रसंगों को एक-एक दो-दो पंक्तियों में इंगित करते हुए जीवन की अनेक महत्त्वपूर्ण घटनाओं को समाहित करने का प्रयास किया है। चालीसा काव्य
की भी अपनी सीमाए है। प्रथमतः इसमें चौपाई छन्दानुसार प्रत्येक पंक्ति में सोलह मात्राएं एवं अस्सी पक्तियां होती है। महान् व्यक्ति का चालीसा काव्य में पूरा वर्णन करना,सागर को गागर में समाहित करने की भांति असम्भव ही है । राम स्नेही सम्प्रदाय के लोक साहित्य में अभिवृद्धि हेतु मैंने इस चालीसा काव्य की रचना कर चालीसा श्रंखला में एक नई कड़ी जोड़ने का प्रयास किया है।
इस रचना-धर्मिता के पीछे एक प्रेरणा स्त्रोत यह भी रहा कि आम जनता की बोली में जो एक कुदरती मिठास होता है उसका अपनापन, रोचकता, लोकप्रियता, प्रभावोत्पादकता और स्थायित्व सभी अपने आप में निराले होते हैं । वह परमानन्द किसी भी अन्य भाषा या बोली द्वारा उस अंचल विशेष के लोगों को प्राप्त नहीं हो सकता है।
मेवाड-मालवांचल में एक बहुत बड़ा वर्ग निरक्षरों का है, जो आंचलिक साहित्य में सर्वाधिक रूचि दर्शाता है । यह धार्मिक कृति, ‘चमत्कार चालीसा’ असंख्य राम-भक्तों के आध्यात्मिक जीवन में सार्थक सिद्ध होगी।
शक्ति व भक्ति की नगरी चित्तौड़गढ़ ही मेरी जन्म भूमि होने के कारण ‘मेवाड़ी मेरी मातृ भाषा रही है। 22 वर्ष पूर्व मेवाड़ी’ में ही मैंने लिखना प्रारम्भ किया जो आज तक जारी है। आशा करता हूँ कि कृति ‘चमत्कार चालीसा समस्त अध्यात्म प्रेमी भक्तजनों के लिए परमोपयोगी सिद्ध होगी। आपके सुंदर सुझाव युक्त पत्रों की प्रतीक्षा में आपका अभिन्न अनुज ..
श्रीश्री 1008 श्रीरामचरणजी महाराज का भक्तिमय जीवन कई वर्षों से हम सभी के लिए एक प्रकाश स्तम्भ की भांति पथ प्रदर्शक रहा है। उनके विभिन्न चमत्कार पूर्ण प्रसंगों को एक-एक दो-दो पंक्तियों में इंगित करते हुए जीवन की अनेक महत्त्वपूर्ण घटनाओं को समाहित करने का प्रयास किया है। चालीसा काव्य
की भी अपनी सीमाए है। प्रथमतः इसमें चौपाई छन्दानुसार प्रत्येक पंक्ति में सोलह मात्राएं एवं अस्सी पक्तियां होती है। महान् व्यक्ति का चालीसा काव्य में पूरा वर्णन करना,सागर को गागर में समाहित करने की भांति असम्भव ही है । राम स्नेही सम्प्रदाय के लोक साहित्य में अभिवृद्धि हेतु मैंने इस चालीसा काव्य की रचना कर चालीसा श्रंखला में एक नई कड़ी जोड़ने का प्रयास किया है।
इस रचना-धर्मिता के पीछे एक प्रेरणा स्त्रोत यह भी रहा कि आम जनता की बोली में जो एक कुदरती मिठास होता है उसका अपनापन, रोचकता, लोकप्रियता, प्रभावोत्पादकता और स्थायित्व सभी अपने आप में निराले होते हैं । वह परमानन्द किसी भी अन्य भाषा या बोली द्वारा उस अंचल विशेष के लोगों को प्राप्त नहीं हो सकता है।
मेवाड-मालवांचल में एक बहुत बड़ा वर्ग निरक्षरों का है, जो आंचलिक साहित्य में सर्वाधिक रूचि दर्शाता है । यह धार्मिक कृति, ‘चमत्कार चालीसा’ असंख्य राम-भक्तों के आध्यात्मिक जीवन में सार्थक सिद्ध होगी।
शक्ति व भक्ति की नगरी चित्तौड़गढ़ ही मेरी जन्म भूमि होने के कारण ‘मेवाड़ी मेरी मातृ भाषा रही है। 22 वर्ष पूर्व मेवाड़ी’ में ही मैंने लिखना प्रारम्भ किया जो आज तक जारी है। आशा करता हूँ कि कृति ‘चमत्कार चालीसा समस्त अध्यात्म प्रेमी भक्तजनों के लिए परमोपयोगी सिद्ध होगी। आपके सुंदर सुझाव युक्त पत्रों की प्रतीक्षा में आपका अभिन्न अनुज ..
अमृत वाणी’